Friday, June 15, 2012

वनवास २: विरह, विषाद, वैराग्य


मत रोको, बहने दो अश्रुधार
है अंतर-निहित आत्म-उद्धार
ये विरह विलय की आगत है
करो स्वागत ले उर प्रेम अपार.
मत रोको, बहने दो अश्रुधार

क्षोभ नहीं, अभिनन्दन का
क्षण है ये जीवन-वंदन का
सम-भाव हो खोने-पाने में
यही है समुचित श्रेष्ठ विचार
मत रोको, बहने दो अश्रुधार

देखो जो बहे- बस पानी हो
दुःख की एकाध कहानी हो
ना नयनों से बह जाये कहीं
स्वर्णिम स्वप्नों का अम्बार
मत रोको, बहने दो अश्रुधार

Picture Courtesy: Priyadarshi Ranjan

19 comments:

  1. जीवन मे भी क्रम से ही चलना पड़ता है ...बस आस नहीं खोना है ...

    ये विरह विलय की आगत है
    करो स्वागत ले उर प्रेम अपार.
    मत रोको, बहने दो अश्रुधार..

    बहुत सुंदर रचना ...

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  2. वाह! अति सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  3. क्षोभ नहीं, अभिनन्दन का
    क्षण है ये जीवन-वंदन का
    सम-भाव हो खोने-पाने में
    यही है समुचित श्रेष्ठ विचार
    मत रोको, बहने दो अश्रुधार... बहुत बढ़िया

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  4. सपने न बहें आँसुओं संग................
    बहुत सुन्दर मधुरेश

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  5. ये विरह विलय की आगत है
    करो स्वागत ले उर प्रेम अपार.
    मत रोको, बहने दो अश्रुधार.......वाह:बहुत खुबसूरत रचना...मधुरेश.सस्नेह.

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  6. जीवन का यही क्रम है ... बहुत सुंदर रचना

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  7. अति सुन्दर रचना...
    बहुत सुन्दर:-)

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  8. स्वर्णिम स्वप्नों का अम्बार
    मत रोको, बहने दो अश्रुधार,,,,,

    बहुत बेहतरीन सुंदर रचना,,,,,मधुरेश जी

    RECENT POST ,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,

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  9. यही है जीवन …………सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  10. देखो जो बहे- बस पानी हो
    दुःख की एकाध कहानी हो
    ना नयनों से बह जाये कहीं
    स्वर्णिम स्वप्नों का अम्बार
    बहुत खूब .... हमेशा मनोबल ऐसे ही रहे .... !!

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  11. Sundar rachna madhuresh ji....wese bhi jo beh jaye aasuon sang...wo sapne hi kya....

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  12. बहुत ही बढ़िया


    सादर

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  13. ना नयनों से बह जाये कहीं
    स्वर्णिम स्वप्नों का अम्बार बहुत सुन्दर है

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  14. क्षोभ नहीं, अभिनन्दन का
    क्षण है ये जीवन-वंदन का
    सम-भाव हो खोने-पाने में
    यही है समुचित श्रेष्ठ विचार
    मत रोको, बहने दो अश्रुधार
    बस यही सम भाव ही नहीं रह पाता इंसान का .... जानते हुवे भी की ये श्रेष्ट है ... लाजवाब कायात्मक रचना ...

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