Monday, February 28, 2011

चाय


चाय की अलग ही बात है!
चाहत इसकी बड़ी निराली.
शाम पकोड़े संग हो,
या सुबह की गरम प्याली.
ये स्वागत-सत्कार
का है मुख्य आधार.
हिंदी हो या चीनी,
पिए सारा संसार.
कोई अगर घर आये,
तब इतना तो निभायिये,
कहिये - 'ज़रा बैठिये,
चाय तो पीते जाईये'.
इज्ज़त बनाने में,
या फिर उतारने में,
इसके बराबर का
न और कोई दूजा.
ग़र न पिलाई चाय,
तो कहेंगे यार
कि 'कमबख्त ने
चाय तक नहीं पूछा!'
चाय है गपशप का,
सबसे बड़ा बहाना .
चाय है उपाय,
जब सुस्ती हो भगाना .
भाई मेरी न मानिए,
खुद की न मानिए,
मगर इसका महत्व,
ज़रा उनसे पहचानिए,
जो करते हैं  PhD ,
काम जिनका 'खीर टेढ़ी'.
फिर भी कितनी तन्मयता से
ये 'चाय-धर्म' निभाते हैं!
दिन में दो-चार बार
चाय पीने ज़रूर जाते हैं.


4 comments:

  1. mast madhuresh!! :) v awesome, bole to ekdum chha gaye

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  2. it took me 10 mins to read it, but it was worth it!
    plus i was there when you first thought of this :)

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