Thursday, February 24, 2011

दिनकर सा अग्नि में जल तू

    

दिनकर सा अग्नि में जल तू,
पथरीले राहों पे चल तू,
तूफानों को बाँध ह्रदय में
रह इस पथ पर अडिग अटल तू.

तप  की अग्नि से उज्जवल तन हो,
करुणा-दीप से रोशन मन हो,
विपदाओं से घिरी धरा में,
सींच ह्रदय में अथाह बल तू.

सुख की चाह तो क्षणभंगुर है,
ऐसे जीने में क्या गुर है,
वो नर क्या जो मखमल चाहे,
मांग विधा से कंटक-तल तू.

1 comment:

  1. मांग विधा से कंटक-तल तू.

    इस ज़ज्बे को नमन!

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