Friday, November 7, 2014

जीवन पूरन कर आई!



अरसों-बरसों से सूखी-सी
सब सन गयी औ' लिपट आई,
सुमनों से संचित मन की धरा
खुशबू से महक-महक आयी।

नव-जीवन अभिनन्दन हेतु
वंदन, चन्दन भी कर आई,
कर आलिंगन, मिल मन से मन
तन-मन सब अर्पण कर आई। 

जो बिम्ब बसा इन नयनों में,
उनपे ही नयन निमन आई,
नित-नित जो नव-नव रूप गढ़े,
उस नेह का नर्तन कर आई।

बहती श्वांसों की गंगा में,
वो डूबी, और उबर आई,
बस प्रेम को पाकर जाना कि
सब जीवन पूरन कर आई।


Picture Courtesy: http://www.layoutsparks.com/1/116318/what-is-love-abstract.html

9 comments:

  1. कल 09/नवंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  2. बहुत प्यारी कविता है मधुरेश भाई.

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  3. बहती श्वांसों की गंगा में,
    वो डूबी, और उबर आई,
    बस प्रेम को पाकर जाना कि
    सब जीवन पूरन कर आई ..
    मधुर ... प्रेम के गीत ... मधुबन खिल उठा जैसे ... लाजवाब ...

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  4. भावनाओं को समेट कर ....कुछ पूरन ऐसे भी होता है अनुपम भाव

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