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"तम-प्रकाश से पूछता रहा मैं-
कौन हूँ मैं, कहो कौन हूँ मैं ?
सब कुछ में कुछ भी नहीं मैं,
कुछ-कुछ में भी सब कुछ ही मैं!"
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सूर्य प्रखर है, तेज प्रहर है,
जगमग रौशन है जग सारा,
सारी सृष्टि जाग चुकी है,
क्यों तेरे मन में अँधियारा ?
हर निशा का आँचल तुझको
दे गया है एक सितारा,
तम का आलिंगन होता है,
सदा नए सुबह का इशारा।
ये भोर है जीने का, और
जी कर कुछ कर जाने का,
मुट्ठी बंद कर, खोल ले आँखें,
अवसर आते नहीं दोबारा!
आज ठान ले आलस तज कर,
जीवन-कला की कहती ज्वाला-
'कर्मयोग' का पथ चलना है,
सुधि में भी औ' परे सुध-कारा!
'कर्मयोग' का पथ चलना है,
सुधि में भी औ' परे सुध-कारा!
Picture Courtesy: http://cdn.dailypainters.com/paintings/_other_side_of_the_earth__abstract_landscape_day_a_d8de0c0927cf4da0c56b51c39a0e669d.jpg
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 07 अगस्त 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (07.08.2015) को "बेटी है समाज की धरोहर"(चर्चा अंक-2060) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteउत्कृष्ट , सुन्दर भाव
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना..
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना..
ReplyDeleteएक बार हमारे ब्लॉग पुरानीबस्ती पर भी आकर हमें कृतार्थ करें _/\_
http://puraneebastee.blogspot.in/2015/03/pedo-ki-jaat.html
Thanks for sharing, nice post! Post really provice useful information!
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