अरसों-बरसों से सूखी-सी
सब सन गयी औ' लिपट आई,
सुमनों से संचित मन की धरा
खुशबू से महक-महक आयी।
नव-जीवन अभिनन्दन हेतु
वंदन, चन्दन भी कर आई,
कर आलिंगन, मिल मन से मन
तन-मन सब अर्पण कर आई।
जो बिम्ब बसा इन नयनों में,
उनपे ही नयन निमन आई,
नित-नित जो नव-नव रूप गढ़े,
उस नेह का नर्तन कर आई।
बहती श्वांसों की गंगा में,
वो डूबी, और उबर आई,
बस प्रेम को पाकर जाना कि
सब जीवन पूरन कर आई।
Picture Courtesy: http://www.layoutsparks.com/1/116318/what-is-love-abstract.html
अति सुन्दर ......
ReplyDeleteकल 09/नवंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
बहुत सुन्दर ....
ReplyDeleteबहुत प्यारी कविता है मधुरेश भाई.
ReplyDeleteबहती श्वांसों की गंगा में,
ReplyDeleteवो डूबी, और उबर आई,
बस प्रेम को पाकर जाना कि
सब जीवन पूरन कर आई ..
मधुर ... प्रेम के गीत ... मधुबन खिल उठा जैसे ... लाजवाब ...
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteभावनाओं को समेट कर ....कुछ पूरन ऐसे भी होता है अनुपम भाव
ReplyDeletebahut umda!
ReplyDeletebahut umda!
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