जेन्नी आंटी की ये रचना पढ़ी (http://lamhon-ka-safar.blogspot.com/2013/06/410.html). मन में कुछ दिनों से कई सारे प्रश्नों का घेराव था- उन पंक्तियों ने बहुत संबल दिया।
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बस लड़ना भर सीखा मैंने,
ना सीखी पलटवार की युक्ति!
पर जानूं और समझूं अब मैं,
नव-युग में अनुबंध की सूक्ति!
नहीं चाहता अबकी मिटना,
सह लूँगा व्रण-शूल-वेदना,
कर सीमित अपनी संवेदना,
वज्र-प्रबल बन मुझको लड़ना।
आशाओं का दीप कहाँ
मरने-मिटने में जलता है,
ये तो केवल वीर मनुज के
उठकर लड़ने में जलता है।
बाहर कुपित, कलुषित, कुंठित
है शक्तिहीन, निज-सीमित 'मैं',
पर ओज तेज प्रताप प्रबल
भीतर में एक असीमित 'मैं'।
मन में ठानूं कि भेद सकूं-
हो चक्रव्यूह जितना भी जटिल।
और भेद लड़ूं, डटकर निकलूँ
हो चाहे शत्रु कितना ही कुटिल।
है युद्ध बदला, बदली नीति,
मगर न धर्म हुआ अवसादित,
करे कपट कितना भी कोई,
मैं लडूँ, तो लड़ूं बस बन मर्यादित।
और हाँ माँ वचन तुमको देता हूँ,
हर चक्रव्यूह भेदता जाऊंगा मैं,
बन खुद तलवार और खुद ही ढाल,
अब जीत ही वापस आऊंगा मैं।
~ जेन्नी आंटी की रचना 'उठो अभिमन्यु ...' पर आधारित और ये पोस्ट उन्हें ही सादर समर्पित है।
बेहतरीन रचना !!बहुत बहुत बधाई.... मधुरेश .
ReplyDeleteमधुरेश भाई, आप ब्लॉग पर लौटे ये बहुत अच्छा लगा. कई दिनों से आपकी रचनाओं की कमी खल रही थी. लड़ना ही होता है ज़िन्दगी में. जो हाथ पर हाथ धर बैठ गए तो लक्ष्य सपनों के सिवा और कहाँ मिल पाता है.
ReplyDeleteशुभप्रभात
ReplyDeleteमन में ठानूं कि भेद सकूं
हो व्यूह चाहे जितनी भी जटिल।
और भेद लड़ूं, डटकर निकलूँ
शत्रु चाहे हो कितना ही कुटिल।
आपकी सारी मुरादें पूरी हो
आमीन !!
हार्दिक शुभकामनायें
बहुत सुंदर और प्रभावशाली रचना ...शब्द शब्द ओजपूर्ण सार्थकता लिए ...
ReplyDeleteअनेक शुभकामनायें ....
बहुत सुंदर रचना ... प्रभावशाली
ReplyDeleteओजस्वी भाव ..... अति सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण प्रभावी रचना,,,
ReplyDeleteRECENT POST: ब्लोगिंग के दो वर्ष पूरे,
बहुत सुन्दर है कविता........जोश सा देती ।
ReplyDeleteबस लड़ना भर सीखा मैंने,
ReplyDeleteना सीखी पलटवार की युक्ति!
पर जानूं और समझूं अब मैं,
नव-युग में अनुबंध की सूक्ति!
बहुत सुंदर रचना. बधाई और शुभकामनाएँ.
सुंदर प्रस्तुति...
ReplyDeleteउत्तरांचल तबाही पर कुछ दोहे...
क्या माँ धारी देवी को नाराज करने के कारण केदारनाथ में भीषण तबाही हुई??
ReplyDeleteबहुत बढ़िया मधुरेश जी ......सार्थक आवाहन ....
शुभ कामनाएं....
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteThe spirit of living and conquering the problems is great. We must learn and unlearn to achieve what we need.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया मधुरेश ..सुंदर प्रस्तुति... सार्थक आवाहन ....
ReplyDeleteआशाओं का दीप कहाँ
ReplyDeleteमरने-मिटने में जलता है,
ये तो केवल वीर मनुज के
उठकर लड़ने में जलता है।
....बहुत खूब! सकारात्मक सोच लिए बहुत प्रेरक प्रस्तुति....
बहुत बढ़िया, प्रेरक प्रस्तुति...
ReplyDeleteएक बार तो लगा कि दिनकर को पढ़ रही हूँ..अति सुन्दर..
ReplyDeleteसुन्दर!
ReplyDeleteमधुरेश,
ReplyDeleteमेरी रचना पर आपकी टिप्पणी पढ़कर बहुत अच्छा लगा. ख़ुशी हुई थी कि मेरी रचना से आपको आपके कुछ प्रश्नों के उत्तर मिले. लेकिन आज आपकी इस रचना को पढ़कर आँखें भीग गई. मेरी यह कविता जिसे मैं अपने बेटे के २०वें जन्मदिन पर लिखी थी लेकिन उसे न बताया न सुनाया. आज आपकी रचना पढ़कर लगा जैसे मैंने अपने दूसरे बेटे को सुनाया हो...
और हाँ माँ वचन तुमको देता हूँ,
हर चक्रव्यूह भेदता जाऊंगा मैं,
बन खुद तलवार और खुद ही ढाल,
अब जीत ही वापस आऊंगा मैं।
आप सदा खुश रहें और जीवन में आपको हर वो ख़ुशी मिले जिसे आप पाना चाहते हैं. बहुत आशीष.
आपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति को कल रविवार, दिनांक 28/07/13 को ब्लॉग प्रसारण http://blogprasaran.blogspot.in पर प्रसारित किया जाएगा ... साभार सूचनार्थ
ReplyDeleteअब अभिमन्यु सशक्त होगा , चक्रव्यूह तोड़ कर निकलेगा !
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