नदियों का प्रेम समर्पण का,
उनका तो प्रेम प्रवाह है बस।
आग़ोश में लेता जाता फिर भी,
सागर की है कुछ कशमकश!
अथाह प्रेम समर्पण का
नदियाँ अपने संग लाती हैं,
पर पत्थर राहों में घिसकर
थोड़ी नमक भी घोल आती हैं।
ये चुटकी भर नमक नहीं
नदियों का मीठापन हरता है,
लेकिन यूँही बूँद-बूँद कर
सागर को खारा करता है।
और जब नदियाँ बादल बनकर
उड़ जाती सागर के ऊपर,
तो फिर बचता सागर में बस
उनका त्यागा नमक चुटकीभर!
सदियों के इस सिलसिले में
सागर खारा होता जाता है,
फिर भी प्रेम कहो कितना जो,
नदियों को फिर भी भाता है!
Inspired by बावली नदी
Dedicated to dear Anu di :)
Picture Courtesy: http://www.nwfsc.noaa.gov/research/divisions/fed/oceanecology.cfm