Sunday, October 14, 2012

कुरुक्षेत्र


कल की बात है 
कुरुक्षेत्र -
रक्त-रंजित था
आज फिर से
रक्त-रंजित है.
वो रक्त
जिसका स्राव भी ततक्षण
वहशी पी जाते हैं.
मानवता अब प्रतिदिन
बे-आबरू होती है
और अब कृष्ण भी कोई नहीं है.
हो भी क्यों?
कृष्ण तो उनका था ही नहीं
कभी भी नहीं
क्योंकि आज का कृष्ण
देखता है
कौन आम है, कौन खास है
उसका एकाधिकार तो अब
खापों के पास है.

Inspired by: Saru Singhal's why-should-i-be-ashamed

Picture Courtesy: http://www.dipity.com/tickr/Flickr_epistemology/

22 comments:

  1. You wrote with so much conviction and relating it to Kurukshetra is so apt. Kudos to this one. Hindi poems are far more effective.

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  2. third post back to back today with the same outrage...

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  3. बीबीसी पर खाप के हास्यास्पद सुझावों को जानकर पता चला अभी देश को बहुत लम्बी यात्रा तय करनी है. कृष्ण तो आये नहीं इनका संहार करने...शायद कोई दूसरा ही बाबर आ जाए ??

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    1. kuchh hona to chahiye.. bahot hi dukhad sthiti hai..

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  4. सशक्त प्रस्तुति.......!!

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  5. सार्थकता लिये सटीक अभिव्‍यक्ति ।

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  6. बहुत सुन्दर और सटीक रचना...

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  7. वाह,.... .....बहुत ही सुन्दर लगी पोस्ट ।

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  8. आपकी लेखनी काबिलेतारीफ |और रचना ने सबकुछ बयां कर दिए है..कुछ कहने की जरुरत नही |

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  9. बेहतरीन सार्थक सटीक प्रस्तुति,,,,,

    RECENT POST ...: यादों की ओढ़नी

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  10. सार्थक प्रस्तुति ....विचारणीय

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  11. thode me hi bahut kuchh kah diya....sashak prastuti...aapki rachna ke aage 'deshwasiyo tum chup hi rahna' bahut hi tucchh lag rahi hai.

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    1. Nahi Anamika di, ye to aap sabhi ka sneh hai bas... lekin jo kuchh ho raha hai desh mein, wo waakayi dukhi kar deta hai mann..

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  12. सार्थक प्रस्तुति .

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  13. बहुत ही हृदय स्पर्शी कविता लिखी है आपने...

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  14. बहुत संवेदनशील रचना. सशक्त रचना के लिए बधाई.

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  15. The pain comes out touching our core.The culture of respecting women/girls has to be the norm for a sane society for she is the Lifeforce.Another friend on twitter had tweeted about the sad reality of our so called dev.nation.But I dont give up.When well meaning people come together change will take place!

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  16. बहुत सशक्त रचना मधुरेश....
    पढ़ कर मन व्यथित हुआ...सरू की रचना भी पढ़ी थी...
    बहुत बढ़िया..

    सस्नेह
    अनु

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  17. क्योंकि आज का कृष्ण
    देखता है
    कौन आम है, कौन खास है
    उसका एकाधिकार तो अब
    खापों के पास है.

    मन को उद्वेलित करती रचना

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  18. कृष्ण तो उनका था ही नहीं
    कभी भी नहीं
    क्योंकि आज का कृष्ण
    देखता है
    कौन आम है, कौन खास है
    उसका एकाधिकार तो अब
    खापों के पास है.

    प्रशंसनीय प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।

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