जब तक थोड़ी भी अज्ञानता है, तब तक सम्पूर्णता नहीं है... और जब तक सम्पूर्णता नहीं
है, तब तक ये मन तो अधजल गगरी ही है ना... कैसे समझाऊँ इसे... ?
काहे छलको रे गगरी अधजल,
समझो सुधि अपनी तेज चपल?
जब जानते हो जीवन है जल,
करना मुट्ठी में प्रयास विफल.
गिरना, लेकिन मत होना विकल
अंतर नित-नित तुम करना प्रबल,
जीता उसने निज जीवन को
सीखा जिसने है जाना संभल.
उर में अब प्रेम अगाध लो भर
धर लो मन में ये विचार विमल
चलना पथ पर तुम धीरज धर
छलके न कभी गगरी अधजल.
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