Thursday, January 9, 2014

फिर से रंग दे!



मन कलिक-कालिमा लिप्त हुआ,
नयनों में भी बस धुआं-धुआं,
अधरों की हंसी भी खोयी सी,
अंतस का दीप भी बुझा हुआ.
इस रंगहीन को अपना संग दे,
रंगरेज़ मेरे, चल फिर से रंग दे!

बीती का बोझ बड़ा भारी है,
इसमें दबती दुनिया सारी है.
किसका पथ निष्कंटक होता है,
किसमें केवल कुसुम क्यारी है!
बीती बिसार, पग नव-पथ धर दे,
रंगरेज़ मेरे, चल फिर से रंग दे!


रंग पक्का कच्चे से ही होता है,
वो ही पाता है, जो खोता है,
कौन ही अथक निखर पाता है,
जो ख़ुद ही सपनों में सोता है!
अब मन बसंत, तन धानी कर दे,
रंगरेज़ मेरे, चल फिर से रंग दे!

12 comments:

  1. अब मन बसंत, तन धानी कर दे ,
    रंगरेज़ मेरे, चल फिर से रंग दे! बहुत सुन्दर पंक्तियाँ..

    ReplyDelete
  2. अति सुन्दर सृजन मधुरेश भाई. रंगरेज़ शायद एक योजना से हर रंग से आशना कराता है. जिसकी परिणति अंततः ज्ञान और और जीवन में अच्छाई के रूप में होती है. और समय आते है तुरत सब रंग भर देता है वही रंगरेज़. तुलसीदास की पंक्तियाँ याद आ रही हैं-

    जब मोरी चादर बनी घर आयो, रंगरेज़ को दीनी
    ऐसा रंग रंगा रंगरे ने कि लालो-लाल कर दीनी

    ReplyDelete
  3. Invincible thoughts revitalizing life....:-)

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर शब्दों से सजाया है अपनी रचना को...एक एक भाव दिल में उतरता हुआ... आपको बधाई

    ReplyDelete
  5. कल 11/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  6. सुन्दर भावों से सजी बहुत सुन्दर रचना...
    :-)

    ReplyDelete
  7. वाह वाह ! अति सुंदर ! जितनी कोमल भावनाएं उतनी ही उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ! हर भाव सबल, हर शब्द प्रखर ! बहुत सुंदर !

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर......

    रंगरेज़ मेरे, चल फिर से रंग दे! इन्द्रधनुषी रंगों से.....
    सस्नेह
    अनु

    ReplyDelete
  9. रंगरेज जिस भी रंग में रंग दे ... बस उसका ही रंग हो ...
    भावपूर्ण ...

    ReplyDelete
  10. बहुत गहन और सुन्दर |

    ReplyDelete
  11. पहले भी मैंने आपकी रचनाये पढ़ी थी हर बार एक अलग ही अनुभूति हुई

    ReplyDelete