Wednesday, June 20, 2012

वनवास ३: तुम तो हो




जब एकांत में प्रशांति न हो,
और चित्त में विश्रांति न हो,
जब सपन-सलोने नयनों में
कौतूहल हो और कान्ति न हो,

जब ठिठके मुझसे मेरी छाया
यूँ जैसे कि पहचानती न हो
जब रूठे मुझसे मेरी तन्हाई,
मैं लाख मनाऊँ, वो मानती न हो,

तुम धीरे से पास बुलाना मुझे,
ख़ुद का एहसास दिलाना मुझे,
ताकि ये लगे कि तुम तो हो,
तुम्हारे न होने की भ्रान्ति न हो.



Picture Courtesy: Santanu Sinha

Friday, June 15, 2012

वनवास २: विरह, विषाद, वैराग्य


मत रोको, बहने दो अश्रुधार
है अंतर-निहित आत्म-उद्धार
ये विरह विलय की आगत है
करो स्वागत ले उर प्रेम अपार.
मत रोको, बहने दो अश्रुधार

क्षोभ नहीं, अभिनन्दन का
क्षण है ये जीवन-वंदन का
सम-भाव हो खोने-पाने में
यही है समुचित श्रेष्ठ विचार
मत रोको, बहने दो अश्रुधार

देखो जो बहे- बस पानी हो
दुःख की एकाध कहानी हो
ना नयनों से बह जाये कहीं
स्वर्णिम स्वप्नों का अम्बार
मत रोको, बहने दो अश्रुधार

Picture Courtesy: Priyadarshi Ranjan

Friday, June 8, 2012

वनवास १: स्वनिर्णित



वनवास कठिन होता है.
और होता है कुछ ज़्यादा ही
जब स्वनिर्णित होता है.

क्योंकि किसी ने कहा अगर
वनवास पे जाने को,
तो तुम चले भी जाओगे.
धर्म की, कर्त्तव्य की
मजबूरियों पर
तोहमत लगाओगे.
लेकिन जब
बिना किसी आग्रह
स्वयं ही जाना हो,
तो मन में कैकेयी, मंथरा
या फिर कौरव, शकुनी
कहाँ से लाओगे?

किसी ने बाँध दी
सीमायें अगर 
तो चुप रह जाना भी
सहज होता है.
जो स्वयं को स्वयं ही
बांधना पड़े,
तो वो असीम बल,
वो आत्म-विश्वास
कहाँ से लाओगे?

वनवास कठिन होता है.
और होता है कुछ ज़्यादा ही
जब स्वनिर्णित होता है.

Picture Courtesy: 'Embrace' by Sutapa Roy