Wednesday, April 25, 2012

ऐ दिल, थोड़ी-सी शरारत कर ले ~~


ऐ दिल, थोड़ी-सी शरारत कर ले,
ये शराफ़त नहीं साथ निभानेवाली
जश्न-ए-ज़िन्दगी का इक प्याला भर ले,
कि लौट के ये वापस नहीं आनेवाली
ऐ दिल, थोड़ी-सी शरारत कर ले ~~

तू जानता है कि होता नहीं ख़यालों में
इश्क की बात नहीं बात फ़साने वाली
बनके उड़जा तू वो पंछी जिसे परवाह नहीं
कब तलक आएगी वो ठौर ठिकाने वाली
ऐ दिल, थोड़ी-सी शरारत कर ले ~~

सुकूँ चाहता है तो घिरा हुआ-सा है क्यूँ?
बंद दीवारों में नहीं ताज़ी हवा आनेवाली
ऐ दिल, थोड़ी-सी शरारत कर ले ~~
ये शराफ़त नहीं साथ निभानेवाली


Picture Courtesy: Priyadarshi Ranjan 

Thursday, April 12, 2012

ओढ़ने की चादर


मैं, साढ़े-पांच का.
और साढ़े-पांच की
मेरी चादर भी.
हर रात बस
एक ही कशमकश
या तू थोड़ी लम्बी होती,
या मैं ही थोड़ा छोटा होता!

Picture Courtesy: http://2.bp.blogspot.com/

Thursday, April 5, 2012

काल-संकुचित!



वो कास्ट देखते हैं,
सब-कास्ट देखते हैं,
कुंडली देखते हैं,
टीपन मिलाते हैं,
दोष देखते हैं,
गुण मिलाते हैं.

कोई मिलान नहीं
भावनाओं का,
विचारों का,
अनुभूति का,
आधारों का,
सपनों का,
एहसासों का.

कैसा मिलन ये!
काल-संकुचित मैं!

Picture Courtesy: http://humblepiety.blogspot.com/2012/03/all-their-works-are-performed-to-be.html

Sunday, April 1, 2012

सखी, भाबोना कहारे बोले?

टैगोर की लिखी इन पंक्तियों को हिंदी के शब्द दे पाना मुश्किल है... फिर भी एक प्रयास अनुवाद का




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ये चिंता क्यों सखी?
ये वेदना क्यों सखी?


ये जो तुम प्रेम के रट
दिन-रात लगाती हो,
क्या उसमे भी अपनी
पीड़ाएँ ही छुपाती हो?
इन नम आँखों से जो
प्रेम की धारा बह रही है,
बताओ उसमे कौन-सा
आनंद है जो पाती हो?


देखो! मेरे नयन से तो
सब प्यारा ही दिखता है!
बिलकुल नया-नया औ'
न्यारा ही दिखता है!
प्यारा नीला आसमान,
और प्यारी ये हरियाली,
रात की चादर ओढ़े
चाँद की मुस्कान निराली!
ये फूल खिलखिलाते से,
सदा हँसते और गाते से,
न आंसू हैं आँखों में,
न कोई विषाद है,
न तड़प है कोई
और न कोई आस है.


शाखों से टूटते फूल भी
गिरते हँसते-मुस्कुराते,
ये तारे भी हँसते हुए ही
निशा में घुलते जाते.
और घुलते-घुलते आता है
फिर से एक नया सवेरा,
ख़ुद को ख़ुश ही पाता है,
इन्हें देख कर मन मेरा.


सखी आओ पास मेरे,
अपनी ये ख़ुशी बाँट लूँ
ख़ुशी के गीत लिखूं,
ख़ुशी ही गुनगुनाऊं.
अपनी ख़ुशी से तुम्हारी
वेदना कम कर पाऊं,
आओ पास सखी,
तुम्हारे ग़म मिटा जाऊं.

प्रतिदिन की वेदना छोड़ो,
आओ एक दिन ख़ुशी मनाएं.
एक दिन सिर्फ ख़ुशी में झूमे,
और ख़ुशी में नाचे-गाएं.
ये चिंता क्यों सखी?
ये वेदना क्यों सखी?


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Thanks to Tripta for sending me such a lovely song!
 Dedicated to Madhu Ma'am (Dr. Madhubala Joshi) from whom I learnt about Tagore in such details last summer.