Monday, November 21, 2011

एक छोटी-सी Love Story


एक बार एक बिल्ली-
बड़ी प्यारी-सी, दुलारी-सी बिल्ली,
एक चूहे पे मर मिटी.
चूहा बिचारा,छोटा, नादान,
बिल्ली को पीछा करता देख,
हो गया परेशान.
जब भी बिल्ली approach मारती,
चूहा फटाक से भाग खड़ा होता.
करता भी क्या, क्या जान अपनी खोता?
बिल्ली अनबुझ-सी सोचती रहती 
कि कैसे बताऊँ
darling मैं जान लेना नहीं,
देना चाहती हूँ.
मैं बाकी बिल्लियों सी नहीं
मैं बहुत अलग हूँ, जुदा हूँ.
पर कैसे कहूँ कि तुमपर फ़िदा हूँ!
प्रेम-पथ भी कितना
असमंजस भरा है!
होना था निर्भीक औ'
भयभीत खड़ा है!
बिल्ली बिचारी frustrated ,
full glass चढ़ा गयी.
चढ़ाया भी ऐसा कि फुर्ती में आ गयी.
पटका glass औ' सरपट दौड़ी,
हुआ सामना, दोनों भागे.
बिल्ली पीछे, चूहा आगे.
धर-पकड़ औ' भागम-भाग!
इधर कुँवा, औ' उधर आग!
पर खेल का होना था अंत
चूहा फंसा, रास्ता था बंद.
आँखें मूंदी, किया नमन,
बची थी उसकी साँसे चंद.
बिल्ली अब आगे बढ़ी,
कहा i love you ,
of course  थी चढ़ी!
किया आलिंगन,
दिया चुम्बन!
चूहा स्तब्ध रह गया,
एकदम निशब्द रह गया!

Picture Courtesy: http://cute-n-tiny.com/cute-animals/cat-and-rat-pals/

Sunday, November 20, 2011

सन्दर्भ विवाह का


विलय-
दो सपनों का,
दो साँसों का,
धडकनों का,
एहसासों का.

विस्तार-
भावनाओं का,
विचारों का,
अनुभूति का,
आधारों का.

विवाह-
नव पथ पर,
नयी दिशा में,
विशेष प्रवाह
जीवन का!
 
Picture Courtesy: http://juganue.deviantart.com/

Entropy-ism 2


संकीर्णता
विवेक की,
विस्तार ढूँढती है!

साधना के
अनुपम सोपान से,
साकार ढूँढती है!

जो निश्चित है,
निरंतर है,
हर बार ढूँढती है!

इक ललित लय में
विलय का
आधार ढूंढती है! 

संकीर्णता ही तो है जो,
विस्तार ढूँढती है!


Picture: Thosegarh Plateau, Satara, Maharashtra, India 

Sunday, November 13, 2011

प्रकृति की वेदना


Our mother nature is continuously being exploited without any rationale. This selfish attitude of human being has drastic repercussions on themselves. If we don't get out of this darkness, nature will have her own way out. Spread the message: 'Save Earth!!'

तुम कहते मैं अभिमानी,
करती नित अपनी मनमानी.
क्या लाज शेष रख करती भी,
जब हर क्षण में मैं मरती हूँ?

हाँ तुमने मुझको धिक्कारा,
निज स्वार्थ तमस घेरा डाला,
इस अन्धकार की अग्नि में
कर धधक-धधक मैं जलती हूँ.

लेकिन मुझे न पश्चाताप,
और न कोई ही संताप,
क्यूँकी हर मृत्यु के बाद प्रिये
इक प्राण नवल मैं धरती हूँ!

हाँ, हर क्षण में मैं मरती हूँ!

Picture Courtesy: scienceray.com