Sunday, November 14, 2010

अर्थ



इस ओर की उलझन नादां है,

उस ओर हकीक़त क्या देखूं?

हैं लाख छिपे अरमां दिल में,

सपनो के पार मैं क्या देखूं?


रुत मिलन की आएगी फिर से,

है इंतज़ार अब क्या देखूं?

इस रास्ते गुज़री है बहार,

श्रावण-श्रृंगार मैं क्या देखूं?


जो छीन लिया तो क्या जीते?

औ' देकर किसी को क्या हारे?

हर बात के मतलब हैं हज़ार,

अब जीत-हार मैं क्या देखूं?

2 comments:

  1. इस रास्ते गुज़री है बहार,

    श्रावण-श्रृंगार मैं क्या देखूं?

    bahot khub

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  2. हर बात के मतलब हैं हज़ार,
    अब जीत-हार मैं क्या देखूं?

    बहुत संबल दिया इस कविता ने!
    आभार भाई!

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