पैसे की तंगी ने
मजबूर किया मुझे
खुद को बेच डालने को।
तो निकल पड़ा मैं भी
इस बाज़ार में
अपना मोल लगाने को।
खुद की खूबियाँ गिनी,
खुद की खामियां गिनी,
भई
नेकी है, ईमान है,
उसूलों वाला इंसान है,
सोचा,
दाम तो अच्छा ही लगेगा,
मगर बाज़ार की डिमांड
तो कुछ और ही थी,
मक्कारी, जालसाजी, दिखावा
येही गुण बिक रहे थे,
दिन भर कड़ी धूप में
बोली लगाता रहा अपनी,
और शाम को मायूस होकर
घर आ गया मैं,
अफ़सोस,
कि कौड़ियों के दाम भी
न बिक पाया मैं!
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