नियमों को बदलने से क्या होगा,
जब नियत ही न बदल पाई हो?
बात आसमां में उड़ने की क्या हो,
जब ज़मीं पर ही न संभल पाई हो!
बड़ी बड़ी बातों में नहीं रखा है,
जवाब हमारी आजादी का कहीं।
इज्ज़त-ओ-कद्र के दो लफ्ज़ ही पर
जब ज़ुबां हमारी न अमल कर पायी हो!
बात न क़ानून की रह गयी है कहीं,
और न किसी इन्साफ में ही दम है।
गली-नुक्कड़ की गन्दगी पे क्या बोलें,
घर-आँगन में ये कचरा क्या कम है?
ज़रूरत है मानसिकता में बदलाव की,
ज़रूरत है कुरीतियों पे पथराव की।
ज़रूरत है कि इस ज़रूरत को समझे हम,
और घर से ही इस कमी की भरपाई हो।
Picture Courtesy: Priyadarshi Ranjan
Picture Courtesy: Priyadarshi Ranjan