Saturday, April 23, 2011

इस पार प्रिये बस यादें हैं



एक सूनापन,एक खालीपन
बेनूर पड़ा मन का दर्पण.
उस पार तो हर क्षण जीवन था,
इस पार वही नीरस नर्तन.

उस पार प्रिये रस था उर में,
हर सांस में खुशबू बसती थी.
हर शब्द शहद सा मीठा था,
नयनों से नेह बरसती थी.

उस पार था मन संगीत भरा,
गीतों में प्रेम झलकता था.
हर मुखड़ा मनभावन लगता,
चहु-ओर स्नेह छलकता था.

उस पार तो जैसे अवनि पर
मुझको था अद्भुत स्वर्ग मिला.
उर से उर की बातें होतीं,
निजवर्ग मिला, सुखसर्ग मिला.

इस पार प्रिये बस यादें हैं,
पल चार बिताये जो तुम संग.
ना रस उर में ना कोई मधु,
बस मन का रंग- तुम्हारा 'रंग'.


Inspired by the poem:
"इस पार, प्रिये मधु है तुम हो,
उस पार न जाने क्या होगा! "
-हरिवंशराय 'बच्चन'

8 comments:

  1. is paar bhi yaadein hain! =)

    bahut hi achchi kavita hai..

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  2. aasha hai tere jeevan ko
    ye yaadein yunhi mehkati rahein,
    man kisi udaas kone ko,
    ek lau bankar chamkati rahein.. :)

    bahut hi achchhi rachna hai.. :)
    dhanyavaad.. :)

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  3. A little bit of Philosophy behind the poem (Bhaawarth)-
    'Us paar' are the moments when One is close to the devine serenity, when One meditates upon God; 'Is paar' are the moments when One is egaged in the worldly affairs..which are superficial and banal...'without madhu! i.e., the devine nectar'

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  4. खुबसुरत रचना और उतनी ही बेहतरीन प्रस्तुति। दिल के भावों को बेहद खुबसुरती से उकेरा है आपने।

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  5. yayyy madhuresh !!

    tumhaari bhi bahut yaad aati hai....

    chai pe tanhaayi satati hai :)

    lab mein tumhaari awaz sunayi deti hai...

    aur lab meeting mein nuclear rotation dekhke to aankhein hi bhar aati hain !

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  6. इस क्षणभंगुर संसार में हम इस पार ही रहते हैं
    और उसपार के बारे में सोंचा करते हैं
    पर मानवता का यह उपहास है
    जब हम उस पार रहतें हैं, तो इस पार की याद सताती है||

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  7. Finely woven, sweet to ponder upon!!

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