प्रिय तुम यूँही दीपक सा बन,
प्राणों को उजियारा रखना,
प्रेम-नदी में खुद को एक
औ' मुझको एक किनारा रखना.
जब होते तुम पास हमारे,
मन मंद-मंद मुस्काता है,
और जब होते दूर कभी तो,
यादों में खो जाता है.
एक मधुर मुस्कान के जैसे
होंठों का इशारा रखना
प्रेम-नदी में खुद को एक
औ' मुझको एक किनारा रखना.
क्या हुआ जो जीवन पथ में
कंटकों के शर उगे हों,
क्या हुआ 'ग़र नियति में
दो-चार पल दूभर हुए हों,
तुम कोमल कुसुम बिछाकर
मन के आँगन को प्यारा रखना
प्रेम-नदी में खुद को एक
औ' मुझको एक किनारा रखना.
प्रिय तुम यूँही दीपक सा बन,
प्राणों को उजियारा रखना
Amazing...luv it!
ReplyDeleteyour poems kindle the romantic in me and perhaps everyone else!
ReplyDeletebeautiful :)