Tuesday, February 23, 2010

ओ तन्हाई


ओ तन्हाई,
मुझसे बातें कर.

दिल का कोई कोना,
कहीं रो रहा है.
सूझता न कुछ, जाने
क्या हो रहा है?
पास आ ज़रा,
अब तो ना मुकर.
ओ तन्हाई,
मुझसे बातें कर.

राह में देखे हैं मैंने
सैकड़ों उल्फत-दगा.
छोड़ सपनों के उड़ान,
अब मन जगा.
हाथ ले तू थाम,
देखता है किधर?
ओ तन्हाई,
मुझसे बातें कर.


बाँध ले मुझको,
कहीं ना छूट जाऊं.
जोड़ दे हिम्मत,
कहीं ना टूट जाऊं.
खुद पे खामोशी का,
ऐसा हो असर!
ओ तन्हाई,
मुझसे बातें कर.

Picture courtsey: http://www.randyyork.net/7182.html

Tuesday, February 16, 2010

अमृत और विष


अमृत और विष
इस धरा पर,
साथ साथ मिलते हैं.
किसने कहा कि उसे
खुशियाँ ही न मिली?
और कौन है यहाँ जो
ग़म में न डूबा हो?
यहाँ पर हर मुस्कान
आंसू कि धारा में बहती है.
और हर दर्द में
एक ख़ुशी छिपी होती है.

Picture Courtesy: http://melissaayr.com/tag/abstract/ 

Sunday, February 14, 2010

मन, तूने क्या पाया था?


मन, तूने क्या पाया था?

नियति नहीं खेलती
मृग-तृष्णा का खेल.
नित्य यहाँ होता है
विरह और मेल.
फिर भ्रमितों की भांति
तू क्यूँ भरमाया था?
मन, तूने क्या पाया था?

अज्ञान का तिमिर भी
है समय का बंधक.
मंथन के प्रकाश में
हो जाता है पृथक.
व्यर्थ की मादकता में
तू क्यूँ डगमगाया था?
मन, तूने क्या पाया था?


त्रिवेणी सा नहीं होता
हर घाट यहाँ पर.
श्वेत-श्यामला जहाँ
मिल जाएँ उमड़ कर.
बहती धारा का क्षोभ
तूने क्यूँ मनाया था?
मन, तूने क्या पाया था?

सत्कर्मों का हर साधी,
आराध्य नहीं होता है.
और विनीत है वो सदैव
बाध्य नहीं होता है.
जीवन के उपवन में क्या
पारिजात खिल आया था?
मन, तूने क्या पाया था?

Picture Courtesy: http://vwoopvwoop.wordpress.com/2011/12/01/respecting-other-peoples-grief/