जीवन असमंजस का प्याला,
तम-प्रकाश की मिश्रित हाला.
२)
ओ छल-साकी मत पिला अब
इतना कि होऊं मतवाला.
सुध-बुध की है यहाँ चौकडी,
अंतर्मन है मधुशाला!
३)
नयना मेरे मधुघट हैं और
चिर उमंग चांदी सा प्याला.
गरिमा की हाला प्रबोधिनी,
स्वर्णलता सी मधुशाला!
४)
रुकते-रुकते चल पड़े मन,
ऐसी आशाओं की हाला.
और चलके रुक जाए जहाँ पर
वहीँ-वहीँ हो मधुशाला
तम-प्रकाश की मिश्रित हाला.
सबल विवेक, निर्बल विकार हों
आशाएं मेरी मधुशाला!२)
ओ छल-साकी मत पिला अब
इतना कि होऊं मतवाला.
सुध-बुध की है यहाँ चौकडी,
अंतर्मन है मधुशाला!
३)
नयना मेरे मधुघट हैं और
चिर उमंग चांदी सा प्याला.
गरिमा की हाला प्रबोधिनी,
स्वर्णलता सी मधुशाला!
४)
रुकते-रुकते चल पड़े मन,
ऐसी आशाओं की हाला.
और चलके रुक जाए जहाँ पर
वहीँ-वहीँ हो मधुशाला
Bahut accha.. Wonderful composition...
ReplyDeleteजिंदगी की मधुशाला ...
ReplyDeleteसंगीता स्वरुप जी, विवेचना एवं अनुशंषा के लिए धन्यवाद!
ReplyDeleteसुन्दर...
ReplyDeleteमधुर मधुशाला...
बहुत सुन्दर ……
ReplyDeleteवहां बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteवाह बहुत खूब
ReplyDeleteउम्दा
बहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteअच्छा लगा आपके ब्लॉग पर।
सादर
विद्या जी, वंदना जी, सदा जी, अंजू जी, यशवंत जी : बहुत धन्यवाद, ख़ुशी हुई कि आपको अच्छी लगी!!
ReplyDeleteयशवंत जी: Disable कर दिया है मैंने अब :)
हलचल पर मिली आपकी यह कविता बहुत ही सुंदर लिखते हैं आप आपकी यह रचना पढ़कर बच्चन जी की मधुशाला याद आगी मुझको बहुत खूब
ReplyDeletemadhushala ....ye b jabardast.
ReplyDeletepat ek hi roop aanek ;aage badhte gana musafir aage badte gana
ReplyDeleteमधुरेश , आपने मुझे ही अपनी रचनाओं से पुन: मिलाया है . सच! मैं भी विस्मृति में थी. नि:संदेह प्रसन्नता हुई. वैसे भी रचना कलम से निकलने के बाद मेरी रहती भी नहीं है और पुन:पढ़कर मैं भी अर्थों को आत्मसात ही करती हूँ. आभार व्यक्त करूँ क्या? मेल करती पर ...
ReplyDeletewow.. bahut a66e...waise to madhushala amar hai...lekin uski amaratva me halchal paida kiya madhushala ko isis trh jevet rkhne ke liye dhanyavad/... sri bachchan sir hamare adarsh me se ek kavi the...aj v ankhon me pani aati hai madhushala ke lines padh ke....dhanyavaad...bahut bahut khub likha hai apne...
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