Monday, May 4, 2009

समय


समय
हँसता है
मुस्कुराता है
चीखता है
चिल्लाता है
रूठता है
मनाता है
लेकिन कभी
शांत नही रहता
चुप नही बैठता
क्यूंकि समय
हमें यही तो समझाता है
कि उससे आगे निकलने के लिए
ये गुण भी होने चाहिए!

Picture Courtsey: http://zacharybrown.files.wordpress.com/2008/10/harvest-time.jpg

Saturday, May 2, 2009

सप्तपर्णा से चार पत्ते


१)
जीवन असमंजस का प्याला,
तम-प्रकाश की मिश्रित हाला.
सबल विवेक, निर्बल विकार हों 
आशाएं मेरी मधुशाला!

२)
ओ छल-साकी मत पिला अब
इतना कि होऊं मतवाला.
सुध-बुध की है यहाँ चौकडी,
अंतर्मन है मधुशाला!

३)
नयना मेरे मधुघट हैं और
चिर उमंग चांदी सा प्याला.
गरिमा की हाला प्रबोधिनी,
स्वर्णलता सी मधुशाला!

४)
रुकते-रुकते चल पड़े मन,
ऐसी आशाओं की हाला.
और चलके रुक जाए जहाँ पर
वहीँ-वहीँ हो मधुशाला