जहां जाना है, उस ओर कदम नहीं बढ़ रहे,
और जहां नहीं जाना, मन वहीं खींचा जाता है!
यह आत्मबल क्या चीटियों से भी क्षीणतम नहीं?
इस मन का हाल क्या दुर्योधन से भी कम नहीं?
जो जानता है धर्म क्या है, फिर भी प्रवृत्ति नहीं,
और पता है अधर्म क्या है, फिर भी निवृत्ति नहीं!
आखिर यह दुर्योधन इतना बलशाली कब हुआ,
और बुद्धिरूपेण अर्जुन इतना खाली कब हुआ?
क्यों विषाद-स्तब्ध वह कृष्ण को नहीं पुकारता?
गीता के अगले अध्याय के पृष्ठ तक नहीं निहारता!
कब इतना जकड़ गया कि तामसिक बन गया?
स्वयं के बनाएं तार में ही कितना उलझ गया!
नेचुरल इंटेलिजेन्स से परिपूर्ण अर्जुन अब हारने लगा है,
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अब बाजी मारने लगा है!
५ जनवरी २०२५
बॉस्टन