अरसों-बरसों से सूखी-सी
सब सन गयी औ' लिपट आई,
सुमनों से संचित मन की धरा
खुशबू से महक-महक आयी।
नव-जीवन अभिनन्दन हेतु
वंदन, चन्दन भी कर आई,
कर आलिंगन, मिल मन से मन
तन-मन सब अर्पण कर आई।
जो बिम्ब बसा इन नयनों में,
उनपे ही नयन निमन आई,
नित-नित जो नव-नव रूप गढ़े,
उस नेह का नर्तन कर आई।
बहती श्वांसों की गंगा में,
वो डूबी, और उबर आई,
बस प्रेम को पाकर जाना कि
सब जीवन पूरन कर आई।
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