एक वृत्त बाहर,
एक वृत्त भीतर
सिकुड़ती त्रिज्याएँ,
घुलती मिथ्याएं
सघन संकुचन,
अंतस क्रंदन
उच्छावास-निश्वास मे
उलझा हुआ प्राण,
निर्वात को कहे क्या-
जीवन या मृत्यु?
जो ये सिकुड़न घोल दे
भीतर का वृत्त,
तो कर्म के बंधन में
फिर से आवृत्त
एक जीवन फिर ढूँढूँगा
या फिर टूट जाय अगर
बाहर का वृत्त,
तो हो जाऊं अन्वृत्त,
अनाकार, निर्विचार
जीवन से परे-
या मृत्यु में घुल जाऊंगा?