जीवन का मदिरालय प्यारा,
भांति-भांति से भरता प्याला,
रंग हो चाहे जो हाले का,
नशा सभी ने जम के पाला।
ज्यों ही एक नशे की सरिता
करे पार, हो जाए किनारा,
त्यों ही दूजी सरिता आकर
मिल जाए, बह जाए किनारा।
हर पग रुकता, थमता-झुकता,
फिर भी आगे बढ़ता रहता,
कौन नशा जीवन से बढ़कर-
डगमग में भी स्वयं संभलता!
हर निशा में एक मधु है,
हर तम लाती एक नशा है,
हो अधीर फिर भी है पीता,
भूले स्मृति-उसकी मंशा है।
लेकिन भूल कहाँ पाता है!
स्मृतियाँ फिर भी आती हैं।
और नशे में नित-नित नव-नव
श्रृंखलाएं बनती जाती हैं।
मगर अंत में एक प्रकाश फिर
अंतस उज्जवल कर जाता है,
बड़े जतन से जाते जाते
ही लाइफ का हैंग-ओवर जाता है!
Picture Courtesy: Priyadarshi Ranjan