Tuesday, December 7, 2010

अंतर्मन


उडती है,
मन के आकाश में
तू उन्मुक्त विचार सी.
दुःख में धैर्य,
सुख में सखी,
तू जीवन आधार सी.
तू अनादि,
अनंत, अजीर्ण
पतझड़ में बहार सी.
तम में और  
प्रकाश में सम,
तू ही बिम्ब, तू आरसी.




Dedicated to my Nani, my forever inspiration for endurance and perseverance.

2 comments:

  1. Hey bhaiya...
    The poem is awesome :)

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  2. Regards to nani ji!
    when the inspiration is divine creation is bound to be wonderful!!!

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