तू प्रगति पथ पर,
बढ़ता रह निरंतर.
सरिता की भांति
पीछे छोड़ता चल
राह के चट्टान पत्थर,
बढ़ता रह निरंतर.
झील की भांति
सीमित रखा कर
अपनी इच्छाएं प्रबल,
बढ़ता रह निरंतर.
सागर की भांति
विशाल करता चल
अपना ह्रदय पटल,
बढ़ता रह निरंतर.
छात्र की भांति
सीढीयाँ चढ़ता चल
लौकिक से अलौकिक पर,
बढ़ता रह निरंतर.
Dedicated to my Hindi Teacher Shri B N Chaturvedi.
When I wrote this poem in my 6th grade, my teacher Sh. B N Chaturvedi encouraged me a lot towards writing. Posting this piece is a tribute to him.