बेटे-बेटियां पढाई-लिखाई, नौकरी-पेशे के सिलसिले में दूर किसी शहर में रहने लगे हैं.
माँ-बाप ने पाला-पोसा, बड़ा किया, बच्चों को लायक बनाया- पर आज वो अकेले हो गए हैं.
और करें भी तो क्या करें- बच्चे दूर हैं, व्यस्त हैं, नाम रोशन कर रहे हैं माँ-बाप का,
इन भावनाओं के बीच ये जो अचानक सा अकेलापन आ गया है, उसे "कैसे कहूँ मैं?"
कैसे कहूँ मैं
कि आजकल बहुत उदास रहती हूँ
तू इतनी दूर जो चला गया है,
बस तेरे ख्यालों के पास रहती हूँ.
तेरी ही फ़िक्र में तो
सारा जीवन काटा है
तेरी सारी खुशियों को, ग़मों को
अब तक मैंने ही बांटा है.
तेरी हर हार में संबल के
पुष्प संजोय हैं मैंने,
और हर इक जीत पर
ख़ुशी के आंसू रोये हैं मैंने.
तेरे लिए ही तो अपने कर्म को
सदा तपस्या सम माना,
तू चमके चाँद सितारों सा
यही सपना बस मन में ठाना.
आज तू चमक रहा है
दूर कहीं आसमान में,
बिलकुल वैसे ही
जगमग चाँद सितारों सा,
और तेरी चमक से
रौशन-रौशन सा है
मेरा भी छोटा-सा जहां
मेरी तपस्या सफल रही
बस यही तसल्ली दिया करती हूँ,
कैसे कहूँ मैं
कि आजकल बहुत उदास रहती हूँ.
तू इतनी दूर जो चला गया है!
Picture Courtesy: Priyadarshi Ranjan
Dedicated to you Maa :)