Showing posts with label हास्य-व्यंग्य. Show all posts
Showing posts with label हास्य-व्यंग्य. Show all posts

Thursday, April 12, 2012

ओढ़ने की चादर


मैं, साढ़े-पांच का.
और साढ़े-पांच की
मेरी चादर भी.
हर रात बस
एक ही कशमकश
या तू थोड़ी लम्बी होती,
या मैं ही थोड़ा छोटा होता!

Picture Courtesy: http://2.bp.blogspot.com/

Monday, January 16, 2012

योर हिंदी वाज़ कूल: A generation that was!


क्या आपको लगता है,
यूँही निकल आते हैं
किसी में हिंदी के पर?
हैरत न होगा जो कहूँ
कि हिंदी का सागर है
हमारा प्यारा घर!

बड़े ही प्रेम से पुत्र-पुत्र कहकर
पुकारती हैं मुझे,
मेरी ही माताश्री!
और मेरी नटखट शरारती बहने भी
कहती हैं मुझे
प्यारे 'भ्राताश्री'!

त्रेता औ' द्वापर की कहानियां
दूरदर्शन से भले ही बीत हो गयीं,
रामायण औ' महाभारत की परन्तु
हमारे घर में सदा की रीत हो गयी!

नानाजी को नमस्कार करते ही
उनके मुखसे 'चिरंजीवी भव:'
के शब्द निकलते थे!
और भीष्म ने क्या दी होगी
जितनी शिक्षा हमारे पितामह
स्वयं ही दिया करते थे!

पिताश्री स्वयं ही
काव्य के महासागर हैं,
और मेरे अनुज भी
शेर-ओ-शायरी में
उदीयमान तारावर हैं!


लोग कहते हैं तुम्हारी हिंदी ही
भला क्या कोई कम है !
सीधे-सीधे क्यूँ नहीं कहते कि
कमबख्त खानदानी प्रॉब्लम है!

अब कहिये इतने शब्दों का
बोझ मैं कब तक ढ़ोऊँ?
क्यूँ ना अपनी रचनाओं से
हिंदी के कुछ नए बीज बोऊँ?

इल्म है मुझे कि मेरी संतानें जब
बरसो बाद इन पौधों को देखेंगी,
पढ़ेंगी कितना पता नहीं, पर
'योर हिंदी वाज़ कूल' अवश्य कहेंगी!




Picture Courtesy: http://www.shutterstock.com/pic-47631088/stock-vector-cartoon-family-portrait.html

Monday, November 21, 2011

एक छोटी-सी Love Story


एक बार एक बिल्ली-
बड़ी प्यारी-सी, दुलारी-सी बिल्ली,
एक चूहे पे मर मिटी.
चूहा बिचारा,छोटा, नादान,
बिल्ली को पीछा करता देख,
हो गया परेशान.
जब भी बिल्ली approach मारती,
चूहा फटाक से भाग खड़ा होता.
करता भी क्या, क्या जान अपनी खोता?
बिल्ली अनबुझ-सी सोचती रहती 
कि कैसे बताऊँ
darling मैं जान लेना नहीं,
देना चाहती हूँ.
मैं बाकी बिल्लियों सी नहीं
मैं बहुत अलग हूँ, जुदा हूँ.
पर कैसे कहूँ कि तुमपर फ़िदा हूँ!
प्रेम-पथ भी कितना
असमंजस भरा है!
होना था निर्भीक औ'
भयभीत खड़ा है!
बिल्ली बिचारी frustrated ,
full glass चढ़ा गयी.
चढ़ाया भी ऐसा कि फुर्ती में आ गयी.
पटका glass औ' सरपट दौड़ी,
हुआ सामना, दोनों भागे.
बिल्ली पीछे, चूहा आगे.
धर-पकड़ औ' भागम-भाग!
इधर कुँवा, औ' उधर आग!
पर खेल का होना था अंत
चूहा फंसा, रास्ता था बंद.
आँखें मूंदी, किया नमन,
बची थी उसकी साँसे चंद.
बिल्ली अब आगे बढ़ी,
कहा i love you ,
of course  थी चढ़ी!
किया आलिंगन,
दिया चुम्बन!
चूहा स्तब्ध रह गया,
एकदम निशब्द रह गया!

Picture Courtesy: http://cute-n-tiny.com/cute-animals/cat-and-rat-pals/

Monday, February 28, 2011

चाय


चाय की अलग ही बात है!
चाहत इसकी बड़ी निराली.
शाम पकोड़े संग हो,
या सुबह की गरम प्याली.
ये स्वागत-सत्कार
का है मुख्य आधार.
हिंदी हो या चीनी,
पिए सारा संसार.
कोई अगर घर आये,
तब इतना तो निभायिये,
कहिये - 'ज़रा बैठिये,
चाय तो पीते जाईये'.
इज्ज़त बनाने में,
या फिर उतारने में,
इसके बराबर का
न और कोई दूजा.
ग़र न पिलाई चाय,
तो कहेंगे यार
कि 'कमबख्त ने
चाय तक नहीं पूछा!'
चाय है गपशप का,
सबसे बड़ा बहाना .
चाय है उपाय,
जब सुस्ती हो भगाना .
भाई मेरी न मानिए,
खुद की न मानिए,
मगर इसका महत्व,
ज़रा उनसे पहचानिए,
जो करते हैं  PhD ,
काम जिनका 'खीर टेढ़ी'.
फिर भी कितनी तन्मयता से
ये 'चाय-धर्म' निभाते हैं!
दिन में दो-चार बार
चाय पीने ज़रूर जाते हैं.