ज़मीं पर है तू मगर मकां आसमां है तेरा,
ये हकीक़त जो है, सपनों से सजा ही तो है,
नींद आँखों से हटा, सपनों का दीदार तो करा।
रुख़ हवाओं का भी बदलता है इक दौर के बाद,
भरके दम उनको इस सीने से गुज़रने तो दे ज़रा।
कोई रोके, कोई टोके, क्या ही परवाह हो किसी की,
तुझे जिसकी भी हो परवाह, कदम उस ओर तू बढ़ा।
कहीं थकना, कहीं गिरना, फिर संभलना है मधुर,
राह की राग है अनोखी, बस हो मन सुर से भरा।
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