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Friday, November 7, 2014

जीवन पूरन कर आई!



अरसों-बरसों से सूखी-सी
सब सन गयी औ' लिपट आई,
सुमनों से संचित मन की धरा
खुशबू से महक-महक आयी।

नव-जीवन अभिनन्दन हेतु
वंदन, चन्दन भी कर आई,
कर आलिंगन, मिल मन से मन
तन-मन सब अर्पण कर आई। 

जो बिम्ब बसा इन नयनों में,
उनपे ही नयन निमन आई,
नित-नित जो नव-नव रूप गढ़े,
उस नेह का नर्तन कर आई।

बहती श्वांसों की गंगा में,
वो डूबी, और उबर आई,
बस प्रेम को पाकर जाना कि
सब जीवन पूरन कर आई।


Picture Courtesy: http://www.layoutsparks.com/1/116318/what-is-love-abstract.html

Saturday, August 2, 2014

प्रेम-पाती



मन की अवनि पर धूप खिला,
नव जीवन को आधार मिला,
बीता तम घन, बीती रातें,
जब प्रीत मिला, मनमीत मिला।

नव-स्वप्नों का अम्बार लिए,
जीवन स्वागत हेतु आई,
खुशबू बिखरी चहु ओर दिशा,
सुमनों की बरखा कर लाई।

जीवन कोरा कागज़ सा है,
प्रियतम के नेह है रंग सभी,
हर कोना रंग भर जाएगा,
जो साथ भरेंगे रंग कभी।

दो जीवन का ये विलय सदा,
अनुभूति का आधार बने,
हो अक्ष-अक्षिका सा तालमेल,
और मधुर मधुर संसार बने।


Picture Courtesy: http://images2.layoutsparks.com

Friday, June 13, 2014

क्षुद्रता


मन मेरा जुगनू की भांति
बुझता औ' जलता रहता है।
इक तुच्छ क्षुद्र सा भाव लिए
चहु ओर भटकता रहता है।

तुम श्रोत हो अविरल रश्मि के,
तुम्हे पाने से क्यों डरता है!
क्यों अपनी ही मर्यादा को
साकार समझता रहता है!

कितना ही तुच्छ हो कोई भी,
इक अहम खटकता रहता है।
बंधकर ख़ुद की सीमाओं में,
ख़ुद से ही लड़ता रहता है।

तुम नेह-प्रेम के सागर हो, 
ये खड़ा किनारे रहता है।
डूबा तो दम भर जाएगा,
ये सोच डुबकी से डरता है

तुम स्वयं सत्य हो, स्वयं चित,
आनंद तुम्ही में रहता है।
फ़िर भी जग की पीड़ाओं को
अविराम ये सहता रहता है।

तुम्हे पाने को, मिल जाने को
ये सदा तरसता रहता है।
औ' बुझते, जलते अंतस की
उत्कंठा प्रज्ज्वल करता है!



Picture Courtesy: http://wolimej.com/wallpapers-beautiful-love-abstract-for-desktop-free/


Sunday, January 13, 2013

तुम नेह सींच सींच लेना



जो नयन तुम्हारे थक-थक जाएं,
और निंदिया हौले-हौले आए,
पलकों के पीछे पलते स्वप्न हों, 
तो न आँखें मींच मींच लेना,
तुम नेह सींच सींच लेना। 

जिनमें मधुर सरिता हो बहती,
स्नेहिल स्वर्ण कणिका हो रहती,  
उन स्वप्नों को लेना तुम थाम,  
और बांहों में भींच भींच लेना, 
तुम नेह सींच सींच लेना। 

जब होते स्वप्न हो विदा विदा,
मत होना उनसे जुदा जुदा,
तुम निद्रा-पटल से बाहर आकर 
उन्हें साकार खींच खींच लेना, 
तुम नेह सींच सींच लेना।

Dreams are inner expressions,
Dreams are the life's inspirations,
Dreams are where the reality is seeded
Dreams are where the love sprouts
Dream love, dream cheers,
Dream for self, dream for peers,
Dream and dream, until you realize
Dream and never let your dream die.


Picture Courtesy: http://www.hindi2tech.com/2010/09/blog-post_17.html

Monday, May 28, 2012

सहगामिनी


सहगामिनी हो जीवन-पथ की,
सहभागी एक-से स्वप्नों की,
हाँ, उसके सुरमयी स्वप्नों की
संचयिका बनना चाहता हूँ.

वो कहे तो मैं सजदे कर लूँ,
या खुद के घुटनों पे हो लूँ,
मगर जहाँ वो सिर रख सके,
वो कन्धा देना चाहता हूँ.

सिर झुका कर बातें कर लूँ,
नेह उसका पलकों पे धर लूँ,
पर उसे सदा मैं आसमान की
बुलंदियों पर देखना चाहता हूँ.


हाँ, उसके सुरमयी स्वप्नों की
संचयिका बनना चाहता हूँ.


Picture Courtesy: http://www.nairaland.com/497893/kneel-down-feed-husband/3

Thursday, March 22, 2012

मधुशाला तुम पे लिख डालूँ





इक सुन्दर, श्रृंगार की कविता
दिल करता तुम पे लिख डालूँ.
कुछ शब्द संजोऊँ मीठे से,
मधुशाला तुम पे लिख डालूँ.

पलकें जब उठती-गिरती हैं
खाली प्याला भर जाता है,
तुम्हे देख-देख ही नयनो में
पुरज़ोर नशा चढ़ जाता है.

किन शब्दों से मुख के रज का
करूँ वर्णन मैं इस नीरज का!
मन रजनि पा तुम सा मयंक,
बस तृप्त-तृप्त हो जाता है.

मुस्कान मृदुल मनमोहक जब
बनकर कुसुम मुख पर खिलती,
जी करता उनको चुन-चुन कर
इक माला उनकी गढ़ डालूँ.

कुछ शब्द संजोऊँ मीठे से,
मधुशाला तुम पे लिख डालूँ.

Picture Courtesy:Priyadarshi Ranjan

Dedicated to Abhishek Bhaiya and Bhabhi :) Wedding gift :)

P S : 'बच्चन' की 'मधुशाला' से इन पंक्तियों का न तो कोई सरोकार है, न ही तुलना की जा सकती है.... पाठकगण से अनुरोध है की इसे simply  एक श्रृंगार की कविता के तौर पर पढ़ें. आभार!

Saturday, January 7, 2012

कई बार ऐसा होता है!


कई बार,
मैं सोचता कुछ और हूँ!
कहता कुछ और ही हूँ!
और बताना
कुछ और ही चाहता हूँ!
लोग समझ नहीं पाते हैं!
बस विस्मित रह जाते हैं!
कई बार ऐसा होता है!

लेकिन ज़रूर कोई जादू है,
जो जान जाती हो तुम,
हमेशा ही
कि मैं क्या सोचता हूँ,
क्या ही कहता हूँ!
और क्या है वो
जो बताना चाहता हूँ!
आखिर ये कैसे होता है!
कई बार ऐसा होता है!

कई बार दो चीज़ें
जुडी हुई तो दिख जाती हैं,
मगर धागे नहीं दिखते!
वो महीन धागे,
जो जोड़ते हैं उन्हें!
फिर कैसे दिख पाता है तुम्हे
वो जो देखना होता है !
कई बार ऐसा होता है!

Thursday, December 29, 2011

मैं ज़रा-सा धीर धर लूँ



छंद यूँ काफी नहीं,
है रात भी बाकी अभी,
वक़्त भी ठहरा हुआ है,
मैं ज़रा-सा धीर धर लूँ.

मुझसे तुम ना अलग कहीं!
मैं पर हूँ तुम विहग वही.
इस सुनहरे आसमाँ में,
उड़के देखूं और विचर लूँ. 

प्रेम नहीं आराधन हो तुम,
मीत मेरे मेरा मन हो तुम.
सुस्वपन-सा इन नयन में ,
मैं निशा का हीर धर लूँ.

है दिखाती मन की दृष्टि,
कि अधूरी मेरी सृष्टि,
थाम लो जो हाथ तुम तो,
अपनी सृष्टि पूर्ण कर लूँ.

मैं ज़रा-सा धीर धर लूँ.



Monday, February 21, 2011

मधुमास



मन की अनबन को छोड़ सखी,
मैं चली पिया के पास.
जो जग छूटे, मोह न मोहे,
बरबस बस इक आस.

पिया प्रेम के आराधन हैं,
उर में उनका वास.
इस बौरन ने घट-घट ढूँढा,
उनका प्रेम निवास.

अथक साधना से पाया है,
ये पावन एहसास.
जो कुछ भी है, सब तेरा है,
तेरी हर इक सांस.


पूर्ण समर्पण मेरा जीवन,
अब ना कोई कयास.
पिया पियारे तीन रंगों में,
रंगा मेरा मधुमास.




Picture Courtsey: Oil paintings reshared from the blog- http://jeanleverthood.blogspot.com/2009/05/poppies-oil-painting-yes-more-poppies.html

Wednesday, October 27, 2010

प्रिय तुम यूँही



प्रिय तुम यूँही दीपक सा बन,
प्राणों को उजियारा रखना,
प्रेम-नदी में खुद को एक
औ' मुझको एक किनारा रखना.


जब होते तुम पास हमारे,
मन मंद-मंद मुस्काता है,
और जब होते दूर कभी तो,
यादों में खो जाता है.
एक मधुर मुस्कान के जैसे
होंठों का इशारा रखना
प्रेम-नदी में खुद को एक
औ' मुझको एक किनारा रखना.

क्या हुआ जो जीवन पथ में
कंटकों के शर उगे हों,
क्या हुआ 'ग़र नियति में
दो-चार पल दूभर हुए हों,
तुम कोमल कुसुम  बिछाकर
मन के आँगन को प्यारा रखना
प्रेम-नदी में खुद को एक
औ' मुझको एक किनारा रखना.


प्रिय तुम यूँही दीपक सा बन,
प्राणों को उजियारा रखना
Dedicated to Swayam Bhaiya and Pooja Bhabhi, the sweet inspiration of living in love!!